Indus Valley Civilisation – सिंधु घाटी सभ्यता (UPSC Notes)
सिंधु घाटी भारत की पहली सभ्यता थी। खुदाई के दौरान मिली चीज़ों से पता चलता है कि सिंधु घाटी में रहने वाले लोगों की मानसिकता बहुत सभ्य थी। वे पक्के मकानों में रहने लगे। चूँकि इस सभ्यता की उत्पत्ति सिंधु नदी के किनारे और उसके क्षेत्र में हुई थी, इसलिए इसे “सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilisation)” कहा जाता है।
इस सभ्यता की खोज सबसे पहले “हड़प्पा” नामक स्थान पर हुई थी जो अब पाकिस्तान है। इसीलिए इसे “हड़प्पा सभ्यता” कहा जाता है।
कालांतर में सर जॉन मार्शल, माधव स्वरूप वत्स, के.एन. दीक्षित, अर्नेस्ट मैके, ऑरेल स्टेइन, अमलानंद घोष, जे. पी. जोशी आदि विद्वानों ने उत्खनन करके महत्त्वपूर्ण सामग्रियाँ प्राप्त की। उत्खनन से प्राप्त अवशेषों के आधार पर इस पूरी सभ्यता को ‘सिंधु घाटी सभ्यता’ (Indus Valley Civilisation), अथवा इसके मुख्य स्थल हड़प्पा के नाम पर ‘हड़प्पा सभ्यता’ कहा जाता है। नामकरण सिंधु घाटी सभ्यता का क्षेत्र अत्यंत व्यापक था। आरंभ में हड़प्पा और मोहनजोदड़ो (Mohanjodaro) की खुदाई से इस सभ्यता के प्रमाण मिले हैं अतः विद्वानों ने इसे सिंधु घाटी सभ्यता का नाम दिया, क्योंकि ये क्षेत्र सिंधु और उसकी सहायक नदियों के क्षेत्र में आते हैं, पर बाद में रोपड़, लोथल, कालीबंगा, बनावली, रंगपुर आदि क्षेत्रों में भी इस सभ्यता के अवशेष मिल जो सिंधु और उसकी सहायक नदियों के क्षेत्र से बाहर थे। अतः इतिहासकार, इस सभ्यता का प्रमुख केंद्र हड़प्पा होने के कारण इस सभ्यता को ‘हड़प्पा की सभ्यता’ नाम देना उचित मानते हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता का काल खंड
सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilisation) के कालखंड के निर्धारण को लेकर विभिन्न विद्वानों के बीच गंभीर मतभेद हैं।
विद्वानों ने सिंधु घाटी सभ्यता को तीन चरणों में विभक्त किया है, ये हैं-
- प्रारंभिक हड़प्पा संस्कृति अथवा प्राक् हड़प्पा संस्कृति : 3200 ईसा पूर्व से 2600 ईसा पूर्व
- हड़प्पा सभ्यता अथवा परिपक्व हड़प्पा सभ्यता : 2600 ईसा पूर्व से 1900 ईसा पूर्व
- उत्तरवर्ती हड़प्पा संस्कृति अथवा परवर्ती हड़प्पा संस्कृति : 1900 ईसा पूर्व से 1300 ईसा पूर्व
सिंधु घाटी सभ्यता का क्षेत्रीय विस्तार
- सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilisation) कांस्ययुगीन सभ्यता (Bronze Age Civilization) थी, जिसका उद्भव ताम्रपाषाण काल (Chacolithic Age) में भारत के पश्चिमी क्षेत्र में हुआ था और इसका विस्तार भारत क अलावा पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान के कुछ क्षेत्रों में भी था।
- सैंधव सभ्यता का भौगोलिक विस्तार उत्तर में मांडा (जम्मू) से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी के मुहाने तक तथा पश्चिम में सुत्कागेंडोर से लेकर पूर्व में आलमगीरपुर (मेरठ) तक था।
- वह उत्तर से दक्षिण लगभग 1100 किमी. तक तथा पूर्व से पश्चिम 1600 किमी. तक थी।
- अभी तक उत्खनन तथा अनुसंधान द्वारा करीब 2800 स्थल ज्ञात किये गए हैं। सिधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilisation) अपने त्रिभुजाकार स्वरूप में थी जिसका क्षेत्रफल लगभग 13 लाख वर्ग किमी. है।
- सर्वप्रथम चार्ल्स मैसन ने 1826 ई. में सैंधव सभ्यता का पता लगाया, जिसका सर्वप्रथम वर्णन उनके द्वारा 1842 में प्रकाशित पुस्तक में मिलता है। उसके बाद वर्ष 1921 में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के तत्कालीन अध्यक्ष सर जॉन मार्शल के नेतृत्व में पुरातत्त्वविद् दयाराम साहनी ने उत्खनन कर इसके प्रमुख नगर ‘हड़प्पा’ का पता लगाया। सर्वप्रथम हड़प्पा स्थल की खोज के कारण इसका नाम ‘हड़प्पा सभ्यता’ रखा गया।
- John Marshal के दिशानिर्देश में ही राखालदास बनर्जी द्वारा सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilisation) के स्थल मोहनजोदड़ो की खोज 1922 में की गई। Radio C-14 Dating के द्वारा हड़प्पा सभ्यता का काल निर्धारण 2500 ई.पू. से 1750 ई.पू. माना गया है। यह सभ्यता 400-500 वर्षों तक विद्यमान रही तथा 2200 ई.पू. से 2000 ई.पू. के मध्य तक यह अपनी परिपक्व अवस्था में थी। नवीन शोध के अनुसार यह सभ्यता लगभग 8,000 साल पुरानी है। सिंधु घाटी सभ्यता के निर्माताओं के निर्धारण का महत्त्वपूर्ण स्रोत उत्खनन से प्राप्त मानव कंकाल (Human Skelton) है। सबसे अधिक कंकाल मोहनजोदडो से प्राप्त हुए हैं। इनके परीक्षण से यह निर्धारित हुआ है कि सिंध सभ्यता में चार प्रजातियाँ निवास करती थीं- भूमध्यसागरीय, प्रोटो-ऑस्ट्रेलॉयड, अल्पाइन तथा मंगोलॉयड।
- सबसे ज़्यादा भूमध्यसागरीय प्रजाति के लोग थे।
सिंधु घाटी सभ्यता की नगर योजना
- सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilisation) एक नगरीय सभ्यता थी
- जिसका ज्ञान इसके पुरातात्त्विक अवशेषों तथा अनुसंधानों से होता है।
- इसकी सबसे बडी विशेषता थी- पर्यावरण के अनुकूल इसका अद्भुत नगर नियोजन तथा जल निकास प्रणाली।
- सड़कें एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। लगभग सभी नगरदो भागों में विभक्त थे
- प्रथम भाग में ऊँचे दुर्ग निर्मित थे। इनमें शासक वर्ग निवास करता था।
दूसरे भाग में नगर या आवास क्षेत्र के साक्ष्य मिले हैं, जो अपेक्षाकृत बड़े थे। आमतौर पर यहाँ सामान्य नागरिक, व्यापारी, शिल्पकार, कारीगर और श्रमिक रहते थे। सड़कों के किनारे की नालियाँ ऊपर से ढकी होती थीं। घरों का गंदा पानी इन्हीं नालियों से होता हुआ नगर की मुख्य नाली में गिरता था। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो तथा कालीबंगा की नगर योजना लगभग एकसमान थी। कालीबंगा व रंगपुर को छोड़कर सभी में पकी हुई ईंटों का प्रयोग हुआ है। आमतौर पर प्रत्येक घर में एक आंगन, एक रसोईघर तथा एक स्नानागार होता था। अधिकांश घरों में कुओं के अवशेष भी मिले हैं।
• बड़े-बड़े भवन हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो की विशेषता बतलाते हैं। हड़प्पाकालीन नगरों के चारों ओर प्राचीर बनाकर किलेबंदी की गई थी, जिसका उद्देश्य नगर को चोर, लुटेरों एवं पशु दस्युओं से बचाना था। मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार सैंधव सभ्यता का अद्भुत निर्माण है, जबकि अन्नागार सिंधु सभ्यता की सबसे बड़ी इमारत है।
• घरों के दरवाज़े एवं खिड़कियाँ मुख्य सड़क पर न खुलकर गलियों में open थीं, लेकिन लोथल इसका अपवाद है। इसके दरवाज़े एवं खिड़कियाँ मुख्य सड़कों की ओर खुलती थीं। यद्यपि मकान बनाने में कई प्रकार की ईंटों का प्रयोग होता था, जिसमें 4:2:1 (लंबाई, चौड़ाई तथा मोटाई का अनुपात) के आकार की ईंटें ज़्यादा प्रचलित थी।
सिंधु घाटी सभ्यता से संबंधित प्रमुख स्थल
हड़प्पा
- यह स्थल वर्तमान पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मोंटगोमरी जिले में स्थित है।
- यहाँ सबसे पहले उत्खनन कार्य किया गया था। यह रावी नदी के तट पर स्थित है।
- सबसे पहले 1826 ईस्वी में एक अंग्रेज पर्यटक चार्ल्स मेसन ने हड़प्पा के टीले के विषय में जानकारी दी थी।
- इसके बाद हड़प्पा स्थल की विधिवत खुदाई 1921 ईस्वी में श्री दयाराम साहनी के नेतृत्व में आरंभ हुई थी।
- इस स्थल पर आबादी वाले क्षेत्र के दक्षिणी भाग में एक कब्रिस्तान प्राप्त हुआ है, जिसे विद्वानों ने ‘कब्रिस्तान एच’ का नाम दिया है।
- हड़प्पा से हमें एक विशाल अन्नागार के साक्ष्य भी मिले हैं। यह सिंधु घाटी सभ्यता ( की खुदाई में प्राप्त हुई तमाम संरचनाओं में दूसरी सबसे बड़ी संरचना है। इस अन्नागार में 6-6 की 2 पंक्तियों में कुल 12 विशाल कक्ष निर्मित पाए गए हैं।
- हड़प्पा से हमें एक पीतल की इक्का गाड़ी मिली है। इसी स्थल पर स्त्री के गर्भ से निकलते हुए पौधे वाली एक मृण्मूर्ति भी मिली है।
- समूची हड़प्पा सभ्यता में हमें सबसे अधिक अभिलेख युक्त मुहरें यहीं से ही प्राप्त हुई हैं।
मोहनजोदड़ो
- मोहनजोदड़ो का सिंधी भाषा में शाब्दिक अर्थ होता है- ‘मृतकों का टीला’। यह वर्तमान पाकिस्तान में सिंध के लरकाना जिले में स्थित है। यह स्थल सिंधु नदी के तट पर स्थित है। इस स्थल पर उत्खनन कार्य 1922 ईस्वी में श्री राखाल दास बनर्जी के नेतृत्व में हुआ था।
- इस स्थल से हमें एक विशाल स्नानागार के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। यहाँ सड़कों का जाल बिछा हुआ था। यहाँ पर सड़कें ग्रिड प्रारूप में बनी हुई थीं। यहाँ से मिली सबसे बड़ी इमारत विशाल अन्नागार है।
- सर्वाधिक मुहरें मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई हैं। उल्लेखनीय है की हड़प्पा स्थल से सर्वाधिक अभिलेख युक्त मुहरें प्राप्त हुई हैं।
- यहाँ से प्राप्त हुए अन्य प्रमुख अवशेषों में शामिल हैं- कांसे की नर्तकी की मूर्ति, मुद्रा पर अंकित पशुपति नाथ की मूर्ति, सूती कपड़ा, अलंकृत दाढ़ी वाला पुजारी, इत्यादि।
चन्हूदड़ो
- चन्हूदड़ो वर्तमान में पाकिस्तान में सिंधु नदी के तट पर स्थित है। यहाँ पर उत्खनन कार्य 1935 ईस्वी में अर्नेस्ट मैके के नेतृत्व में किया गया था।
- यहाँ पर शहरीकरण का अभाव था। इस स्थल से विभिन्न प्रकार के मनके, उपकरण, मुहरें इत्यादि प्राप्त हुई हैं। इस आधार पर विद्वानों द्वारा अनुमान लगाया जाता है की चन्हूदड़ो में मनके निर्माण का कार्य होता था। इसीलिए इस स्थल को सिंधु घाटी सभ्यता का औद्योगिक केंद्र भी माना जाता है।
- चन्हूदड़ो सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilisation) का एक मात्र ऐसा स्थल है, जहाँ से हमें वक्राकार ईटों के साक्ष्य प्राप्त होते हैं।
कालीबंगा
- कालीबंगा स्थल वर्तमान राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में स्थित है। यह प्राचीन ‘सरस्वती नदी’ के तट पर स्थित था। इस स्थल की खोज 1953 ईस्वी में अमलानंद घोष द्वारा की गई थी।
- कालीबंगा नामक स्थल से हमें जुते हुए खेत, एक साथ दो फसलों की बुवाई, अग्नि कुंड के साक्ष्य मिले हैं। यहाँ से जल निकासी प्रणाली के साक्ष्य नहीं मिलते हैं।
- यहाँ से बेलनाकर मुहरों, अलंकृत ईंटों के साक्ष्य मिले हैं।
लोथल
- लोथल वर्तमान में गुजरात के अहमदाबाद में भोगवा नदी के तट पर स्थित है। यह स्थल खंभात की खाड़ी के अत्यंत निकट स्थित है।
- इस स्थल की खोज 1957 ईस्वी में श्री एस. आर. राव द्वारा की गई थी। सिंधु घाटी सभ्यता का यह स्थल एक प्रमुख बंदरगाह स्थल था।
- सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilisation) के इस बंदरगाह स्थल लोथल में एक विशाल गोदी बाड़ा मिला है।
- लोथल से धान व बाजरे, दोनों के साक्ष्य मिलते हैं। इस बंदरगाह स्थल से हमें तीन युगल समाधियों के साक्ष्य भी प्राप्त होते हैं।
धौलावीरा
- धौलावीरा वर्तमान गुजरात के कच्छ जिले की भचाऊ तहसील में स्थित है। यह सिंधु घाटी सभ्यता कालीन स्थल मानहर व मानसर नदियों के पास स्थित है।
- धौलावीरा में अन्य सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilisation) कालीन स्थलों के विपरीत नगर का विभाजन तीन हिस्सों में मिलता है। सिंधु घाटी सभ्यता कालीन अन्य नगरों का विभाजन दो हिस्सों में किया गया था।
- धौलावीरा में हमें बाँध अथवा कृत्रिम जलाशय के साक्ष्य मिले हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि इस नगर में जल प्रबंधन की उत्कृष्ट व्यवस्था मौजूद थी।
7. राखीगढ़ी
- हरियाणा के हिसार जिले में स्थित प्रमुख पुरातात्विक स्थल।
- यहाँ से अन्नागार एवं रक्षा प्राचीर के साक्ष्य मिले हैं।
- मई 2012 में ‘ग्लोबल हैरिटेज फंड’ ने इसे एश्यिा के दस ऐसे ‘विरासत-स्थलों’ की सूची में शामिल किया है, जिनके नष्ट हो जाने का खतरा है।
8. बनावली
- हरियाणा के फतेहाबाद जिले में स्थित इस पुरास्थल की खोज 1973 ई. में आर.एस. बिष्ट ने की थी।
- इस स्थल से कालीबंगा की तरह हड़प्पा-पूर्व और हड़प्पाकालीन दोनों संस्कृतियों के अवशेष मिले हैं।
- यहाँ जल निकास प्रणाली का अभाव था।
- यहाँ से मिट्टी का बना हल मिला है।
- बनावली से अधिक मात्रा में जौ मिला है।
इनके अलावा, अन्य स्थलों में संघोल, रोपड़, कोटदीजी इत्यादि शामिल हैं।
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हड़प्पाई लिपि
हड़प्पाई लिपि में लगभग 64 मूल चिह्न एवं 205-400 तक अक्षर हैं जो सेलखड़ी की आयताकार मुहरों, तांबे की गुटिकाओं आदि पर मिलते हैं। इस लिपि का सबसे पुराना नमूना 1853 ई. में मिला था और 1923 ई. तक पूरी लिपि प्रकाश में आ गई थी, परंतु अभी तक इसको पढ़ा नहीं जा सका है। इसकी लिपि पिक्टोग्राफ अर्थात् चित्रात्मक थी जो दाईं ओर से बाईं ओर लिखी जाती थी। इस पद्धति को बूस्ट्रोफेडन (Boustrophedon) कहा गया है। सबसे ज़्यादा चित्र ‘U’ आकार तथा ‘मछली’ के प्राप्त हुए हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता में नगर नियोजन
- सड़कें समकोण पर काटती थीं और इस प्रकार से नगर योजना एक ग्रिड प्रारूप अर्थात् जाल पद्धति पर आधारित थी।
- सिंधु घाटी सभ्यता में जल निकासी प्रणाली भी अपना विशेष महत्व रखती है। इस दौरान शहर में नालियों का जाल बिछा हुआ था।
- भवन निर्माण के लिए पक्की ईंटों का प्रयोग किया जाता था। सिंधु घाटी सभ्यता कालीन प्रत्येक घर में एक रसोई घर और एक स्नानागार होता था।
- नगर को दो हिस्सों में विभाजित किया जाता था। एक ‘पश्चिमी टीला’ होता था, जिसे ‘दुर्ग’ कहते थे, जबकि दूसरा हिस्सा ‘पूर्वी टीला’ होता था, जिसे ‘निचला नगर’ कहते थे।
सिंधु सभ्यता कालीन लोगों की सामाजिक जीवन
- यह समाज मातृसत्तात्मक रहा होगा। इतिहासकारों के अनुसार, समाज चार वर्गों में विभक्त था- विद्वान, योद्धा, श्रमिक और व्यापारी।
- हड़प्पावासी साज-सज्जा पर विशेष ध्यान देते थे। स्त्री एवं पुरुष दोनों आभूषण धारण करते थे। यहाँ से प्रसाधन मंजूषा मिली है। चन्हूदड़ो से लिपस्टिक के साक्ष्य मिले हैं। सिंधु सभ्यता के लोग सूती व ऊनी दोनों प्रकार के वस्त्रों का प्रयोग करते थे। इस सभ्यता के लोग शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार का भोजन करते थे। यहाँ के लोग मनोरंजन के लिये चौपड़ और पासा खेलते थे। अंत्येष्टि में पूर्ण समाधीकरण सर्वाधिक प्रचलित था, जबकि आशिक (Partial)समाधीकरण एवं दाह संस्कार का भी चलन था।
- यहाँ के लोग गणित, धातु निर्माण, माप-तौल प्रणाली, ग्रह-नक्षत्र, मौसम विज्ञान इत्यादि की जानकारी रखते थे।
- श्रमिकों की स्थिति का आकलन कर व्हीलर ने दास प्रथा को स्वीकार किया है। राजनीतिक जीवन हड़प्पाइयों के राजनीतिक संगठन का कोई स्पष्ट आभास नहीं है।
- चूँकि, हड़प्पावासी वाणिज्य-व्यापार की ओर अधिक आकर्षित थे, इसलिये ऐसा माना जाता है कि शासन व्यवस्था में भी वणिक अथवा व्यापारी वर्ग की भूमिका महत्त्वपूर्ण थी। हंटर के अनुसार, “मोहनजोदड़ो का शासन राजतंत्रात्मक न होकर जनतंत्रात्मक था।”
- व्हीलर के अनुसार, “सिंधु सभ्यता के लोगों का शासन मध्यवर्गीय जनतंत्रात्मक शासन था और उसमें धर्म की महत्ता थी।”
- आर्थिक जीवन सैंधव सभ्यता की उन्नति का प्रमुख कारण उन्नत कृषि तथा व्यापार था। अतः इस काल की अर्थव्यवस्था ही सिंचित कृषि अधिशेष, पशुपालन, विभिन्न दस्तकारियों में दक्षता और समृद्ध आंतरिक और विदेश व्यापार पर आधारित थी। सैंधव सभ्यता का व्यापार केवल सिंधु क्षेत्र तक ही सीमित नहीं था अपितु मिस्र, मेसोपोटामिया और मध्य एशिया से भी व्यापार होता था।
- सैंधव सभ्यता के प्रमुख बंदरगाह- लोथल, रंगपुर, सुरकोटदा, प्रभासपाटन आदि थे। हड़प्पा सभ्यता में माप की दशमलव प्रणाली तथा माप-तौल की इकाई 16 के गुणक में होती थीं।
- इस सभ्यता के लोग गेहूँ, जौ, राई, मटर, तिल, सरसों, कपास आदि की खेती किया करते थे। सबसे पहले कपास पैदा करने का श्रेय सिंधु सभ्यता के लोगों को दिया जाता है। यूनानियों ने इसे ‘सिंडन’ (सिडोन) नाम दिया है। ये लोग तरबूज़, खरबूज़, नारियल, अनार, नींबू, केला जैसे फलों से भी परिचित थे। यहाँ के प्रमुख खाद्यान्न गेहूँ तथा जौ थे। कृषि कार्य हेतु प्रस्तर (पत्थर) एवं काँसे के औज़ारों का प्रयोग किया जाता था। इस सभ्यता में फावड़ा या फाल नहीं मिला है। संभवतः ये लोग लकड़ी के हलों का प्रयोग करते थे। सैंधव नगरों में कृषि पदार्थों की आपूर्ति ग्रामीण क्षेत्रों से होती थी, इसलिये अन्नागार नदियों के किनारे बनाए गए थे। कृषि उन्नति के साथ पशुपालन का भी विकास हुआ था। कृषि कार्यों एवं व्यापार तथा परिवहन में पशुओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। पशुओं में- कूबड़ वाले बैल, भेड़, बकरी, हाथी, भैंस, गाय, गधे, सुअर व कुत्ते आदि के होने का अनुमान है।
- ये लोग शाकाहार और माँसाहार, दोनों ही तरह के भोजन का प्रयोग करते थे। ये ऊनी और सूती, दोनों ही प्रकार के वस्त्रों का उपयोग करते थे। पुरुष और महिलाएँ, दोनों ही आभूषण पहनते थे।
- सिंधु घाटी सभ्यता के लोग शांतिप्रिय लोग थे। यहाँ से तलवार, ढाल, शिरस्त्राण, कवच इत्यादि के साक्ष्य नहीं मिले हैं।
- गुजरात के निवासी हाथी पालते थे।
Indus Valley Civilization धार्मिक जीवन
सैंधव निवासी ईश्वर की पूजा मानव, वृक्ष एवं पशु तीनों रूपों में करते थे। इस सभ्यता के लोग भूत-प्रेत, तंत्र-मंत्र आदि में विश्वास करते थे। ताबीजों के आधार पर जादू-टोने में विश्वास करने तथा कुछ जगहों की मुहरों (जैसे-चन्हूदड़ो में) पर बलि प्रथा के दृश्य अंकित होने के आधार पर बलि प्रथा का भी अनुमान लगाया जाता है। ये लोग मातृदेवी, रुद्र देवता (पशुपति नाथ), लिंग-योनि आदि की पूजा करते थे। इसके अलावा सैंधववासी वृक्ष, पशु, साँप, पक्षी इत्यादि की भी पूजा करते थे। विशाल स्नानागार का प्रयोग संभवतः धार्मिक अनुष्ठान तथा सूर्य पूजा में होता होगा। कालीबंगा से प्राप्त अग्निकुंड के साक्ष्य के आधार पर कहा जा सकता है कि अग्नि तथा स्वास्तिक (1) आदि की पूजा की जाती थी। स्वास्तिक और चक्र सूर्य पूजा के प्रतीक थे। सैंधववासी पुनर्जन्म में विश्वास करते थे, इसलिये मृत्यु के बाद दाह संस्कार के तीन तरीके प्रचलित थे- पूर्ण शवाधान, आंशिक शवाधान एवं कलश शवाधान। इनके धार्मिक दृष्टिकोण का आधार इहलौकिक तथा व्यावहारिक अधिक था। मूर्ति पूजा का आरंभ संभवतः सैंधव सभ्यता से ही होता है। हड़प्पा से प्राप्त एक मृणमूर्ति के गर्भ से एक पौधा निकला दिखाया गया है, जो उर्वरता की देवी का प्रतीक है।
सिंधु सभ्यता कालीन लोगों की आर्थिक स्थिति
- ये लोग विभिन्न कृषि वस्तुओं, जैसे- जौ, चावल, गेहूँ, मटर, सरसों, राई, तिल, तरबूज, खजूर इत्यादि का उपयोग करते थे।
- सिंधु घाटी सभ्यता के स्थलों से हमें जुते हुए खेत के साक्ष्य, एक साथ दो फसलें बोए जाने के साक्ष्य इत्यादि प्राप्त हुए हैं।
- हड़प्पा सभ्यता एक कांस्य युगीन सभ्यता थी। कांसा बनाने के लिए तांबे और टिन को क्रमशः 9:1 के अनुपात में मिलाया जाता था। हड़प्पा सभ्यता के लोग लोहे के प्रयोग से परिचित नहीं थे और संभवतः उन्हें तलवार के विषय में भी जानकारी नहीं थी।
- इस दौरान आंतरिक और बाह्य दोनों ही व्यापार समृद्ध अवस्था में थे। सुमेरियन सभ्यता के लेखों से ज्ञात होता है कि विदेशों में सिंधु सभ्यता के व्यापारियों को मेलुहा के नाम से जाना जाता था।
- लोथल नामक सिंधु घाटी सभ्यता कालीन स्थल से हमें फारस की मुहरें प्राप्त होती हैं तथा कालीबंगा से बेलनाकर मुहरें प्राप्त होती हैं। ये सभी प्रमाण सिंधु घाटी सभ्यता के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की ओर इशारा करते हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता का पतन
- सिंधु घाटी सभ्यता का पतन कैसे हुआ, इसके संबंध में विभिन्न विद्वानों के अनेक मत हैं। लेकिन उनमें से कोई भी मत सर्वसम्मति से स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि ये सभी मत सिर्फ अनुमानों के आधार पर दिए गए हैं।
- गार्डन चाइल्ड, मॉर्टिमर व्हीलर, पिग्गट महोदय जैसे विद्वानों ने सिंधु घाटी सभ्यता के पतन का कारण आर्य आक्रमण को माना था, लेकिन विभिन्न शोधों के आधार पर अब इस मत का खंडन किया जा चुका है और यह सिद्ध किया जा चुका है कि आर्य बाहरी व्यक्ति नहीं थे, बल्कि वे भारत के ही मूल निवासी थे। इसलिए आर्यों के आक्रमण के कारण सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के मत को वैध नहीं माना जा सकता है।
- इसके अलावा, विभिन्न विद्वान जलवायु परिवर्तन, बाढ़, सूखा, प्राकृतिक आपदा, पारिस्थितिकी असंतुलन, प्रशासनिक शिथिलता इत्यादि को सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के लिए उत्तरदायी कारक मानते हैं।
साक्ष्यों से पता चलता है कि सिंधु घाटी सभ्यता एक अत्यंत विकसित सभ्यता थी, लेकिन अभी तक इस बात का कोई सीधा सपाट को उत्तर नहीं दिया जा सकता है कि आखिर इसका पतन कैसे हुआ होगा। इसके अलावा, सिंधु घाटी सभ्यता की चित्रात्मक लिपि अभी तक पढ़ी भी नहीं गई है। ऐसे में, जब तक सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि नहीं पढ़ ली जाती, तब तक इसके अनसुलझे सवालों का कोई स्पष्ट उत्तर देना जल्दबाजी होगी।
सैंधव सभ्यता की देन
सैंधव सभ्यता में प्रचलित अनेक चीजें ऐतिहासिक काल में भी निरंतर रहीं। इसके कुछ प्रमुख उदाहरण हैं- दशमलव पद्धति पर आधारित माप-तौल प्रणाली, नगर नियोजन, सड़कें एवं नालियों की व्यवस्था, बहुदेववाद का प्रचलन, मातृदेवी की पूजा, प्रकृति पूजा, शिव पूजा, लिंग एवं योनि पूजा, योग का प्रचलन, जल का धार्मिक महत्त्व, स्वास्तिक, चक्र आदि प्रतीक के रूप में ताबीज, तंत्र-मंत्र का प्रयोग, आभूषणों का प्रयोग, बहुफसली कृषि व्यवस्था, अग्नि पूजा या यज्ञ, मुहरों का उपयोग, इक्कागाड़ी एवं बैलगाड़ी, आंतरिक एवं बाह्य व्यापार आदि। सैंधव सभ्यता की एक प्रमुख देन नगरीय जीवन के क्षेत्र में है। पूर्ण विकसित नगरीय जीवन का सूत्रपात इसी सभ्यता से हुआ।
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